एक पत्नी की स्वीकारोक्ति-confession of a wife a new short hindi story
एक पत्नी की स्वीकारोक्ति -मोपासां
बंधुवर ,आज जब मुझसे अपने जीवन के मधुर संस्मरणों की चर्चा करने का अनुरोध किया गया है तो बता दूँ कि मुझे अब वृद्धावस्था ने पूर्ण रूप से जकड लिया है। और मै एकाकी हो गया हूँ ,बिलकुल अकेला। भेद उजागर करने में कोई बाधा नहीं है सिर्फ मेरा नाम किसी के सामने प्रकट मत करना। अपने जीवन काल में मै अति सुंदरी थी। आत्मा को सजीव रखने के लिए प्रेम की आवशयकता होती है। बिना प्रेम के जीने का क्या तातपर्य, यह ढोंग ही तो है जब स्त्रियां यह कहती है कि वे अपने परिपूर्ण ह्रदय से केवल एक ही बार प्रेम करती है। एक घटना का जिक्र करुँगी जिसमे मै पूर्णतः निर्दोष थी। हार्वे नाम के एक व्यक्ति से मेरा विवाह एक बर्ष पूर्व हुआ था। पर इस व्यक्ति के लिए मेरे मन में प्यार का नहीं उमड़ा। जो प्रेम विवाह को मन्त्रों अथवा क़ानून द्वारा मत्थे मढ़ दिया जाता है उसे क्या वास्तव में प्रेम कह सकते है ? मेरे पति का शारीरिक गठन बहुत सुन्दर था स्वभाब भी बहुत अच्छा पर उसमे बुद्धि का अभाव था। वह मुँहफट भी था। उसके कोई स्वतंत्र विचार नहीं थे। हमलोग जिस कोठी में रहते थे वह एकांत और निर्जन स्थान में था। कोठी के चारों तरह हरे -भरे बाग़ थे। एक चौकीदार था जो मेरे पति की सेवा में सदैव रहता दूसरा एक स्त्री थी वह मेरी परिचारिका थी। सोलह साल की रंग रूप जिप्सी लड़की की तरह। हमलोग शिकार पर निकल जाते। इसी समय बैरन सी से मुलाक़ात हुई वह नियमित रूप से आता पर अकस्मात् उसका आना बंद हो गया। पति का मेरे प्रति व्यवहार बदलने लगा था। मै उससे चिढ़कर एक अलग कमरे में रहने लगी थी। मुझे एहसास होता कि कोई व्यक्ति चुपचाप निःशब्द मेरे कमरे में आता और फिर वापस चला जाता। मेरे पति उसे चौकीदार बताते। एक दिन मैंने हार्वे को प्रसन्न मुद्रा में पाया। उसने मुझे अपने साथ शिकार पर ले जाना चाहा। हम दोनों बाघ को पार कर आगे बढ़ते रहे। चारों तरफ सन्नाटा छाया था। हमलोग एक तालाब के किनारे पहुँच गए। हमलोग एक कुटिया की तरफ बढे। और मेरे पति ने कुटिया के भीतर प्रवेश करने को कहा भीतर जाकर उसने बन्दूक में गोली भरी। उसका व्यवहार मेरे लिए विचित्र और असहनीय लग रहा था। देखो वह इसी तरफ आ रहा है उसने कहा। । एक सन्नाटा चारों तरफ पसर सा गया था। सामने देखो वह पेड़ों के नीचे खड़ा है। मैंने देखा चाँदनी के प्रकाश में एक आदमी दौड़ा चला आ रहा है। गोली चली और वह भेड़िये की तरह जमीन पर लोटता हुआ दिखाई दिया। मै आतंक से चीख उठी।
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उसने उस लाश के ऊपर पटक दिया। वह शायद मुझे जान से मार डालना चाहता था। उसने अपने जूते की नोकी से मेरे माथे पर मारने के लिए ऊपर उठा ली तभी किसी ने उसे पीछे से पकड़कर नीचे गिरा दिया। देखा ,मेरी परिचारिका पार्किता एक जंगली बिल्ली की तरह उसपर टूट पड़ी है। और उसे पागलों की तरह नोंच रही है। जो व्यक्ति हार्वे की गोली से मरा था उसे उसने गले से लगाकर बिलख -बिलख कर रोने लगी। मेरा पति भी उठ बैठा। मेरे पैरों को पकड़कर उसने कहा -मुझे माफ़ कर दो। मुझसे बड़ी भूल हुई , तुम्हारे चरित्र पर झूठमूठ संदेह कर अनजाने में इस लड़की के प्रेमी को मार डाला। उसका प्रेमी कोई और नहीं बल्कि वह मेरा चौकीदार था। जिसकी गतिविधि ने मुझे धोखे में डाल दिया। पर मेरा सारा ध्यान उस प्रेम -पीड़िता उन्मादिनी नारी की तरफ था जो अपने मृत प्रेमी की लाश को अपनी बाहों में जकड़े हुए बिहल्वता से बिलख रही थी। और तभी से मैंने अपने संदिग्ध ,हृदयहीन , पति को धोखा देने का निश्चय किया।
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