हद कंजूसी की.-funny story in hindi short
funny story in hindi short
हम एक से बढ़कर एक funny story प्रकाशित करते हैं। पेश है इसी कड़ी में आज हम “हद कंजूसी की”funny story in hindi short प्रकाशित कर रहे हैं . आशा है आपको ये story पसंद आएगी
दीपांकर जी सरकारी ऑफिस में बड़ा बाबू थे. भले उनका नाम दीपांकर ज्ञान था, लेकिन नाम के ही ज्ञान थे, असल जिंदगी में ज्ञान से उनका दूर दूर तक वास्ता नहीं था, लेकिन माँ बाप ने बहुत ही प्यार से नाम ज्ञान रखा था, शायद इसलिए वो सरकारी ऑफिस में पैरवी के बदौलत बड़ा बाबू बन गए. ये तो नाम की बात हुई, काम की बात करे तो काम से उनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था, और स्वभाव की बात करे तो उनके जैसा कंजूस पुरे ऑफिस में कोई नहीं था, मतलब वो बहुत ही बड़े कंजूस थे. उनके घर में उनकी पत्नी के अलावे एक बेटा और दो बेटी थी. कुल मिलकर परिवार में सिर्फ 5 लोग थे, और कंजूसी इतना करते थे की उनके घर कभी कोई गेस्ट नहीं आता था. पहले तो ऑफिस में लंच ले जाया करते थे,ऑफिस में लंच के समय सभी स्टाफ अपना अपना लंच लाते थे और एक ही साथ किया करते थे, शुरू में दीपांकर बाबू भी लंच ले जाया करते थे, फिर एक दिन वो लंच नहीं लाये और स्टाफ के लंच में ही खाना खा लिया बताया की उनकी बीवी माईके गयी है, कुछ दिनों के बाद आएगी, इसलिए वो लंच के समय खाना ले जाना छोड़ दिया, सोचा चलो अच्छा है, एक समय का खाना तो बच गया. अब रात का खाना बचाने के लिए दीपांकर बाबू दिमाग लगाया, उन्होंने शाम में ऑफिस से ही अपनी पत्नी को कॉल कर दिया और बताया की वो आज खाना नहीं खाएंगे, ऑफिस में ही खा कर आएंगे. रात को जब घर पहुंचे तो जब सब खाना खाने के लिए बैठे तो दीपांकर बाबू ने कहा की मुझे भी खाना दे दो, पार्टी नहीं हुई इसलिए खा कर नहीं आया.अब रोज का यही तय हो गया, ऑफिस में स्टाफ का खाना खाते और घर में बने 4 लोगो के खाने में अपना पेट भर लेते. मतलब साफ़ था की अब दो समय का खाना वो रोज बचाने लगे. घर में वो कुछ खरीदते नहीं थे, क्योँकि बिजली बिल आएगा , इसलिए वो ना तो घर में टीवी लाये ना ही कभी फ्रीज लिया, हद तो तब कर दी जब सवेरे जग जाते और पडोसी का पेपर पढ़ कर उसे दे देते. मतलब जहाँ से कंजूसी करना संभव था, कंजूसी करते थे, रात को सब्जी खरीदने जाया करते थे, बचा हुआ सब्जी लेते जो काफी कम दामों में मिल जाया करता था, कुल मिला कर आप समझ ही गए होंगे की उन्होंने किस हद तक कंजूसी करते थे, चाय पिने का शौक था, लेकिन चाय भी स्टाफ के पैसो से ही पिया करते थे, कभी उन्होंने अपने पैसे ना खुद चाय पिया ना कभी किसी को पिलाया होगा.उनके इस स्वभाव से घर में बीबी और बच्चे परेशान और बाहर ऑफिस में स्टाफ सब परेशान. एक दिन तो एक स्टाफ ने पूछ ही लिया की आपकी बीबी कब आएगी, इस पर दीपांकर साहेब ने बताया की बीबी आ गयी है लेकिन बीमार हैं. आस्चर्य था की उनकी कंजूसी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी.
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लेकिन क्या कर सकते थे? रोज रोज के पार्टी की वजह से परेशान उनकी बीवी ने उन्हें बिना बताये उनके लिए खाना बनाना शुरू कर दिया, और कई बार ऑफिस में भी स्टाफ ने खाना लाना छोड़ दिया, आखिर कब तक कोई खिलता रहता और कब तक दीपांकर बाबू झूट बोलते रहते. एक दिन ऑफिस में ही एक स्टाफ के सामने बीबी का कॉल आ गया और बीबी ने पूछा, आज खाना बना दू? इस पर दीपांकर बाबू ने कहा , नहीं ! आज भी खा कर आऊंगा.
आजिज आ कर बीबी और बच्चे सवेरे खा लिए, ऑफिस में भी कोई लंच नहीं लाया था, दिन भी बिना खाये रह गए , और घर पहुँचने के बाद भी खाना नहीं मिला, दीपांकर बाबू तो पानी पी कर सो गए, 2-3 दिन ऐसा ही चलता रहा अब तो आखिर दीपांकर बाबू ने बीवी को समझाया की मैं तो पैसा बचा रहा था, लेकिन तुम समझ नहीं रही हो . इस पर बीबी ने बोला, पैसा बचाना सही है लेकिन इतनी कंजूसी करना सही नहीं है, आप तो कंजूसों के सरदार बनने में लग गए हैं.
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