गुरु भक्ति गुरु श्रद्धा-Guru bhakti a new short inspirational story in hindi of teacher
प्राचीन समय की बात है किसी गांव में एक तपस्वी रहा करते थे, तपस्या करने के साथ-साथ वे प्रतिदिन गांव के लड़कों को शिक्षा भी देते थे। उनके इन सभी शिष्यों में गांव का एक होनहार नवयुवक था, जो गुरु भक्ति में विश्वास रखता था और उसे अपने गुरु जी पर विश्वास करता था। गुरुजी ने कई बार अपने शिष्यों से कहा था कि वे उन्हें मंत्र देंगे, तभी से प्रतिदिन सभी शिष्य गुरु जी से मंत्र मांगते थे, लेकिन गुरु जी यह कह कर टाल देते थे कि समय आने पर बता दूंगा। इसी प्रकार कई महीने बीत गए तब एक दिन गुरुजी ने कहा कि आज मैं तुम्हें मंत्र देता हूं लेकिन तुम्हें एक वर्ष तक उसकी सिद्धि करनी होगी, तभी वह मंत्र काम करेगा, लेकिन दुर्भाग्यवश उस दिन वह होनहार शिष्य नहीं आया, इसलिए उसे मंत्र नहीं मिला।अगले दिन जब वह आश्रम आया तो उसने देखा कि उसके सभी साथी किसी मंत्र का जाप कर रहे हैं । उसने अपने गुरु जी से कहा आपने मुझे मंत्र नहीं दिया। तब गुरुजी ने कहा मैंने तो मन तो दिया था, लेकिन तुम नहीं आए यह तुम्हारी गलती है। उसने गुरुजी से बहुत विनती की लेकिन गुरु जी नहीं माने वह भी अपनी जिद पर अड़ा रहा वह प्रतिदिन गुरुजी से मंत्र मांगने के लिए आ जाता था एक दिन गुरुजी अपने कार्य से निवृत्त होकर बाहर आए तो उसने गुरु जी के पांव पकड़ लिए और मंत्र की जिद करने लगा गुरु जी को गुस्सा आ गया तो उन्होंने कह दिया ‘आवे जावे कई नी आवे बार-बार जा अठे से तू ‘वह युवक समझदार था लेकिन भोला भी था
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उसे लगा कि यही मंत्र है और उसने उसका जाप करना प्रारंभ कर दिया। कुछ महीनों पश्चात गांव के सेठ के लड़के की तबीयत खराब हो गई अनेक वेद ,हकीमो ने उसका इलाज किया लेकिन कोई असर ना हुआ बाद में गुरुजी के अन्य शिष्यों ने भी प्रयास किया लेकिन वह भी असफल रहे अंत में उस शिष्य ने मंत्र का जाप करते हुए उसके शरीर पर हाथ फेरा तो वह ठीक हो गया। यह देखकर सभी शिष्य गुरु जी के पास गए और उनसे कहा कि आपने हमें गलत मंत्र दिया है सही मंत्र तो आपने उसको दे दिया तब गुरुजी उसके पास गए और पूछा मैंने तुम्हें मंत्र कब दिया तब उसने कहा आपने कहा था कि आवे जावे कई नी आवे बार-बार जा अड़े से तु यह सुन गुरुजी आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने कहा यह कोई मंत्र नहीं था यह तो मैंने गुस्से में तुमसे जाने के लिए कहा था लेकिन तुम्हारी गुरु भक्ति और गुरु पर श्रद्धा सच्ची थी इसलिए यह एक मंत्र बन गया। और उसी दिन से वह गुरुजी का सबसे प्रिय शिष्य हो गया।
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