मन की शुद्धि-motivational thought with story in hindi
motivational thought with story in hindi
हम एक से बढ़कर एक motivational kahaaniyan प्रकाशित करते हैं। पेश है इसी कड़ी में आज हम “मन की शुद्धि”motivational thought with story in hindi प्रकाशित कर रहे हैं . आशा है आपको ये kahani पसंद आएगी
बहुत से लोग ऐसे हैं जो मन की शुद्धि से ज्यादा शरीर की शुद्धि पर विश्वास रखते हैं, इसलिए तो मन में छल रखते हुए हमेशा तीर्थ करते रहते हैं, उनके अनुसार तीर्थ करने से उनके मन के सारे पाप धूल जाते हैं और वो साफ़ हो जाते हैं, लेकिन ऐसा संभव नहीं है, मन की शुद्धता जरुरी है ना की तीर्थ करके शुद्ध होना.
एक बार की बात है, एक आश्रम में एक संत रहा करते थे, उनके बहुत सारे शिष्य थे,एक दिन एक साधु का संघ आया और उसने उस संत को अपने साथ तीर्थ पर चलने को कहा, संत ने तीर्थ पर जाने से मना किया, इस पर उनके शिष्य ने कहा की तीर्थ पर जाना तो मन और तन की शुद्धि माना जाता है, इस पर संत ने कहा की मैं तो नहीं जा पाउँगा, लेकिन मेरे इस कद्दू को ले जाओ,
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यह कद्दू बहुत ही कड़वा है, इसे अपने साथ रखना और जहाँ भी जाना इसे साथ ले जाना, जहाँ भी पवित्र कुंड या नदी में स्नान करना इस कद्दू को भी करवाना, संघ के अन्य साधू और संत के शिष्य इस बात को मान लिए और उस कद्दू को साथ ले गए.जहाँ – जहाँ गए, स्नान किया वहाँ – वहाँ स्नान करवाया; मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया. ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगो ने वह कद्दू संतजी को दिया. संत जी ने सभी यात्रिओ को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया, तीर्थयात्रियो को विविध पकवान परोसे गए. तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दूकी सब्जी विशेष रूपसे बनवायी गयी थी. सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है.” संत जी ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है. बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है .”
यह सुन सभी यात्रिओ और शिष्य को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है. हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आये है.’
सही बात है मन की कड़वाहट को दूर करना चाहिए ना की तीर्थ स्नान कर अपने मन को शुद्ध करना चाहिए.
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