आज का सुविचार-Thought of the day from the experience of writer
आज का सुविचार -बीत जाती है जिंदगी ये ढूंढने में ,कि ढूंढना क्या है—-जबकि मालूम नहीं ये भी ,कि जो मिला है ,उसका करना क्या है —साथ लेकर क्या जाओगे —मैं कल पुरानी सोसाइटी जहां पहले रहता था ,वहा चला गया। बस पुराने जान -पहचान से भेंट -मुलाक़ात करने। तभी एक आदमी आया और उसने मुझे प्रणाम किया। मैंने पहचानने की कोशिश की। उसका नाम याद नहीं आ रहा था। उसने कहा -भैया ,पहचाने नहीं ,मैं हूँ बाबू ,आंटीजी के यहां काम करते थे। ,’आंटी जी कैसी हैं ,मैंने पूछा। बाबू कुछ पल रूककर बोला ,आंटी जी तो गई। कहाँ ? मुझे लगा कि कहीं वह अपने बेटे के पास विदेश तो नहीं चली गई ?’ बाबू थोड़ा गंभीर मुद्रा में बोला ,-‘भैया ,आंटीजी भगवान् के पास चली गई। ‘कब ,? उसने कहा ,दो महीने पहले। आखिर हुआ क्या था आंटीजी को ?’ कुछ नहीं , बुढ़ापा की बीमारी उनका बेटा भी बहुत दिनों से अपनी मान को देखने नहीं आया था। वह अपने बेटे को बहुत याद करती थी। वह अपने बेटे के पास कभी नहीं गई ,कहती थी यह मकान बहुत मिहनत से बना है ,मैं अगर यह मकान छोड़ कर चली गई तो कोई इस मकान पर कब्ज़ा कर लेगा। तुमने तो उनकी खूब सेवा की। अब तो वह परलोक सिधार गई ,अब तुम क्या करोगे ?’ भैया ,मैं अपने गाँव से अपनी फॅमिली को ले आया हूँ। दोनों बच्चे और पत्नी अब यही रहते हैं।
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‘आंटीजी के जाने के बाद उनका बेटा यहां आया था सप्ताह के बाद चला गया। उन्होंने कहा कि घर की देखभाल करते रहो। वे वहाँ से पैसे भेजने लगे। मेरे बच्चे को अच्छे स्कूल में एडमिशन हो गया है। मैं इतने बड़े फ्लैट में बड़े आराम से रहता हूँ। कुछ -कुछ काम भी कर लेता हूँ। बेटा मकान नौकर को दे गया है। ये सोचकर कि वह रहेगा तो कोई और मकान पर कब्ज़ा नहीं कर पायेगा। मकान तो सचमुच बहुत मिहनत से बनता है। पर भला ऐसी मिहनत भी किस काम की ,जिसके आप सिर्फ पहरेदार बन कर रह जाते हैं ? आंटीजी मकान के लिए कभी बेटे के पास नहीं गई मकान के लिए बेटा अपनी माँ को कभी अपने पास नहीं बुला पाया। वाह रे किस्मत का खेल। सच कहें हम लोग मकान के पहरेदार ही तो हैं। बाबू ने कहा ,भैया अब यहां कौन आनेवाला है। जब मान ज़िंदा थी तब तो बेटा आया नहीं तो मरने के बाद वो किसलिए आएंगे ?मकान तो मैं कहीं लेकर नहीं जा रहा हूँ मैं तो देखभाल ही कर रहा हूँ। बात मेरी समझ में आ रही थी ,बाबू अब नौकर नहीं ,वो अब मकान मालिक हो गयाहै। फिर उसने कहा -‘किसी ने कहा है कि मुर्ख आदमी मकान बनवाता है ,बुद्धिमान आदमी उसमे रहता है। ,साहब सब किस्मत की बात है। मैं वहाँ से चल पड़ा यह सोचते कि सब किस्मत की बात है।
पीछे बाबू की हंसी गूँज रही थी ,’ मैं मकान लेकर कहीं जावूंगा थोड़े ही ?’मैं तो सिर्फ देखभाल ही कर रहा हूँ ‘ मैं सोच रहा था ,मकान लेकर इस दुनिया से कौन जाता है भला ?’सब तो केवल देखभाल ही करते हैं। चार दिनों की जिंदगी ,मिलजुलकर हंस -हंसाकर गुजार ले ,क्या पता कब किसका बुलावा आ जाए क्योंकि इस धरा का। इस धरा पर ,सब यहीं धरा रह जाएगा। –पा लेने की बेचैनी ,और खो देने का डर ,–बस इतना ही है ,जिंदगी का सफर। ‘
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